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Sad Love Shayari

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10 Feb 2025

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Sad Love Shayari In Hindi For Boyfriend

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10 Feb 2025

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Sad Shayari in Hindi 2020

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10 Feb 2025

Shayari

अब इन जले हुए जिस्मों पे ख़ुद ही साया करोमेरे आँसू नही थम रहे कि वो मुझसे जुदा हो गयापहले उसकी खुशबू मैंने खुद पर तारी कीकोई समंदर, कोई नदी होती कोई दरिया होतातू भी कब मेरे मुताबिक मुझे दुख दे पायाएक दुख ये के तू मिलने नहीं आया मुझसेमैं ज़िन्दगी में आज पहली बार घर नहीं गयाये आईने में जो मुस्का रहा हैमैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर तमाम नाख़ुदा साहिल से दूर हो जाएँ अश्क ज़ाया हो रहे थे देख कर रोता न थाजब से उसने खींचा है खिड़की का पर्दा एक तरफ़अश्क ज़ाएअ' हो रहे थे देख कर रोता न थाशोर करूँगा और न कुछ भी बोलूँगाचीख़ते हैं दर-ओ-दीवार नहीं होता मैंएक और शख़्स छोड़कर चला गया तो क्या हुआजो तेरे साथ रहते हुए सोगवार होतुझे भी अपने साथ रखता और उसे भी अपना दीवाना बना लेताक्या खबर उस रौशनी में और क्या क्या रोशन हुआआईने आंख में चुभते थे बिस्तर से बदन कतराता था तिलिस्म-ए-यार ये पहलू निकाल लेता हैतुमने तो बस दिया जलाना होता हैएक और शख़्स छोड़कर चला गया तो क्या हुआन नींद और न ख़्वाबों से आँख भरनी हैये एक बात समझने में रात हो गई हैउसे भी साथ रखता, और तुझे भी अपना बना लेताउसके चाहने वालों का आज उसकी गली में धरना हैपराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा अश्क़ ज़ाया हो रहे थे, देख कर रोता न थाअजीब ख़्वाब था उस के बदन में काई थीकिसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही हैमुझे बहुत है के मैं भी शामिल हूँ तेरी जुल्फों की ज़ाइरीनों में,"तुम अकेली नहीं हो सहेली""हम मिलेंगे कहीं""तू किसी और ही दुनिया में मिली थी मुझसे"एक सहेली की नसीहतमुझ पे तेरी तमन्ना का इल्ज़ाम साबित न होता तो सब ठीक थामेरी बरसों की उदासी का सिला कुछ तो मिले"मैं बिज़नेस-मैन हूँ जानम"दबी कुचली हुई सब ख़्वाहिशों के सर निकल आएइश्क़ में दान करना पड़ता हैगाहे गाहे बस अब यही हो क्याबड़ा एहसान हम फ़रमा रहे हैं काम की बात मैं ने की ही नहींमुझ पे हैं सैकड़ों इल्ज़ाम मिरे साथ न चल अकेले रहने की ख़ुद ही सज़ा क़ुबूल की हैअजीब मंज़र है बारिशों का मकान पानी में बह रहा हैमैं अँधेरों से बचा लाया था अपने आप कोमेरे अश्कों ने कई आँखों में जल-थल कर दिया शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए मस्जिदों के सहन तक जाना बहुत दुश्वार था पुराने दाँव पर हर दिन नए आँसू लगाता है अंधेरे चारों तरफ़ साएँ साएँ करने लगे नदी ने धूप से क्या कह दिया रवानी में इसे सामान-ए-सफ़र जान ये जुगनू रख ले सबब वो पूछ रहे हैं उदास होने का अपने दीवार-ओ-दर से पूछते हैं अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसेइतना संगीन पाप कौन करेये तुम सब मिल के जो कुछ कह रहे होतुम्हारे बाद ये दुख भी तो सहना पड़ रहा हैनजरअंदाज हो जाने का ज़हर अपनी नसों में भर रहा है कौन जानेहम यूँ ही नहीं शह के अज़ादार हुए हैं अपने यारों से बहुत दूर नहीं होता थाचमकते दिन बहुत चालाक है शब जानती हैमैं इश्क अलस्त परस्त हूंवो किसी के साथ ख़ुश था कितने दुख की बात थीभीगी पलकें देख कर तू क्यूँ रुका है ख़ुश हूँ मैंबस इक निगाह-ए-नाज़ को तरसा हुआ था मैंचाँद को दामन में ला कर रख दियाभरे हुए जाम पर सुराही का सर झुका तो बुरा लगेगा खाली बैठे हो तो एक काम मेरा कर दो नाबात करो रूठे यारों से सन्नाटों से डर जाते हैंखुद से भी मिल न सको, इतने पास मत होनाकोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता हैरूह जिस्म का ठौर ठिकाना चलता रहता हैतुम्हारा फ़ोन आया हैशहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास तुम अपने बारे में कुछ देर सोचना छोड़ोदुख अपना अगर हम को बताना नहीं आताक्या दुख है समंदर को बता भी नहीं सकताक्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकताअंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है अपने अंदाज़ का अकेला था दूर से ही बस दरिया दरिया लगता है मुझे तो क़तरा ही होना बहुत सताता है कुछ इतना ख़ौफ़ का मारा हुआ भी प्यार न हो सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते कहाँ सवाब कहाँ क्या अज़ाब होता है दुआ करो कि कोई प्यास नज़्र-ए-जाम न हो निगाहों के तक़ाज़े चैन से मरने नहीं देते सिर्फ़ तेरा नाम ले कर रह गया लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होतावो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जातामेरी नजर के सलीके में क्या नहीं आताक्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकतादुख अपना अगर हम को बताना नहीं आताअपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसेअपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊंगा"खिलौना""मेरा शहर"न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो होहुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई गुफ़्तुगू करे इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा गुफ़्तुगू अच्छी लगी ज़ौक़-ए-नज़र अच्छा लगा सामने उस के कभी उस की सताइश नहीं की दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहेंआँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगाक्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं"हिच-हाईकर"तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही उन के रुख़्सार पे ढलके हुए आँसू तौबा चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त सदियों से इंसान ये सुनता आया है तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएँ मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया उसकी जुल्फ़ें उदास हो जाएएक मेहमाँ का हिज्र तारी हैतुम्हें बस यह बताना चाहता हूं ज़रा मोहतात होना चाहिए था हम तो बचपन में भी अकेले थे फिरते हैं कब से दर-ब-दर अब इस नगर अब उस नगर इक दूसरे के हम-सफ़र मैं और मिरी आवारगीमैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा क्यूँ डरें ज़िन्दगी में क्या होगासच ये है बे-कार हमें ग़म होता है वो ज़माना गुज़र गया कब कादुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग हम तो बचपन में भी अकेले थे ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब दर्द अपनाता है पराए कौन मुझ को यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं घर में बैठे हुए क्या लिखते हो वो जो कहलाता था दीवाना तिरा मैं बंजारा अजीब आदमी था वो आँख खुल गई मेरी एक शायर दोस्त सेये वक़्त क्या हैक़फस उदास है यारों सबा से कुछ तो कहो और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा गो सब को बहम साग़र ओ बादा तो नहीं था दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं "अंजाम"जब दुख की नदिया में हम ने गुज़र रहे हैं शब ओ रोज़ तुम नहीं आतीं सच है हमीं को आप के शिकवे बजा न थे अब क्यूँ उस दिन का ज़िक्र करो आज की रात साज़-ए-दर्द न छेड़ गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मिरे दोस्त आज के नाम वो वक़्त मिरी जान बहुत दूर नहीं है तुझ को कितनों का लहू चाहिए ऐ अर्ज़-ए-वतन मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मिरे दोस्तमुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँगमैं इस ख़याल से जाते हुए उसे न मिलाकोई इतना प्यारा कैसे हो सकता हैकरेगा क्या कोई मेरे गले-सड़े आँसूहज़ार सहरा थे रस्ते में यार क्या करताआप जैसों के लिए इस में रखा कुछ भी नहींकोई इतना प्यारा कैसे हो सकता हैएक तस्वीर कि अव्वल नहीं देखी जातीमैंने चाहा तो नहीं था कि कभी ऐसा होअ'र्ज़-ए-अलम ब-तर्ज़-ए-तमाशा भी चाहिएचाँद सा मिस्रा अकेला है मिरे काग़ज़ परहम तो कुछ देर हँस भी लेते हैंशे'र मेरे कहाँ थे किसी के लिएकिसी की याद में पलकें ज़रा भिगो लेते मैं कब तन्हा हुआ था याद होगा ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे बड़े ताजिरों की सताई हुईउदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओरेत भरी है इन आँखों में आँसू से तुम धो लेनाकौन आया रास्ते आईना-ख़ाने हो गएउदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैंपत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी हैशबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआहमारे पास तो आओ बड़ा अंधेरा हैमैं तुम को भूल भी सकता हूँ इस जहाँ के लिएजब तक निगार-ए-दश्त का सीना दुखा न थाये ज़र्द पत्तों की बारिश मिरा ज़वाल नहींमिरी ज़बाँ पे नए ज़ाइक़ों के फल लिख देबे-तहाशा सी ला-उबाली हँसीपहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं मेंहँसी मा'सूम सी बच्चों की कॉपी में इबारत सीपिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा हैवो सूरत गर्द-ए-ग़म में छुप गई होउदासी आसमाँ है दिल मिरा कितना अकेला हैयूंही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करोहै अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम हैरोना पड़ेगा बैठ के अब देर तक मुझे पहले ये काम बड़े प्यार से माँ करती थीमुनव्वर माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना मसर्रतों के ख़ज़ाने ही कम निकलते हैंपैरों को मिरे दीदा-ए-तर बाँधे हुए हैअना हवस की दुकानों में आ के बैठ गईकाले कपड़े नहीं पहने हैं तो इतना कर लेतुम्हारे जिस्म की ख़ुश्बू गुलों से आती हैचले मक़्तल की जानिब और छाती खोल दी हम नेथकन को ओढ़ के बिस्तर में जा के लेट गएजुदा रहता हूँ मैं तुझ से तो दिल बे-ताब रहता हैबादशाहों को सिखाया है क़लंदर होनाया रब मुआ'फ़ कर के न दे कर्ब-ए-इंफ़िआल तू चाहिए न तेरी वफ़ा चाहिए मुझे अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैंजुदाई का ज़माना यूँ ठिकाने लग गया थातुम हो तो क़रीब और क़रीब-ए-रग-ए-जाँ होदमे-सुख़न ही तबीयत लहू लहू की जाएकिसी के बादजब भी ये दिल उदास होता हैकोई अटका हुआ है पल शायदकहीं तो गर्द उड़े या कहीं ग़ुबार दिखेगुलों को सुनना ज़रा तुम सदाएँ भेजी हैंदिखाई देते हैं धुँद में जैसे साए कोई"अकेले" दिल में ऐसे ठहर गए हैं ग़मसीधा-साधा डाकिया जादू करे महान एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक हुए सब के जहाँ में एक जब अपना जहाँ और हमहर इक रस्ता अँधेरों में घिरा हैदुख में नीर बहा देते थे सुख में हँसने लगते थेनशा नशे के लिए है अज़ाब में शामिलहर चमकती क़ुर्बत में एक फ़ासला देखूँतलाश कर न ज़मीं आसमान से बाहरजो भला है उसे बुरा मत करकिसी भी शहर में जाओ कहीं क़याम करोयूँ लग रहा है जैसे कोई आस-पास हैवो ख़ुश-लिबास भी ख़ुश-दिल भी ख़ुश-अदा भी हैएक ही धरती हम सब का घर जितना तेरा उतना मेरारात के बा'द नए दिन की सहर आएगीतू क़रीब आए तो क़ुर्बत का यूँ इज़हार करूँये कैसी कश्मकश है ज़िंदगी मेंहर एक घर में दिया भी जले अनाज भी होहर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाएहर एक घर में दिया भी जले अनाज भी होहर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए तन्हा तन्हा दुख झेलेंगे महफ़िल महफ़िल गाएँगे दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा "ख़ुदा ख़ामोश है""ख़ुदा का घर नहीं कोई""कल रात""मोर नाच""सरहद-पार का एक ख़त पढ़ कर""नज़्म बहुत आसान थी पहले""आदमी की तलाश""लफ़्ज़ों का पुल"मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी दिल पर गुज़रता हैइक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ सर-गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को महरम नहीं है तू ही नवा-हा-ए-राज़ का जो न नक़्द-ए-दाग़-ए-दिल की करे शोला पासबानी हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बा'द इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई दर-ख़ुर-ए-क़हर-ओ-ग़ज़ब जब कोई हम सा न हुआ मैं देर तक तुझे ख़ुद ही न रोकता लेकिन इसी खंडर में कहीं कुछ दिए हैं टूटे हुए शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास तेज़ एहसास-ए-ख़ुदी दरकार है बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें समझता हूँ कि तू मुझ से जुदा है रोना हो आसान हमारासूना आँगन नींद में ऐसे चौंक उठा हैउदास हैं सब पता नहीं घर में क्या हुआ हैतन से जब तक साँस का रिश्ता रहेगागुज़र रहा है वो लम्हा तो याद आया हैसफ़र से मुझ को बद-दिल कर रहा थाबड़ा है दुख सो हासिल है ये आसानी मुझेबे-तकल्लुफ़ मिरा हैजान बनाता है मुझेपहली बार वो ख़त लिक्खा थानहीं मैं हौसला तो कर रहा थाएक मुद्दत हुई घर से निकले हुएजो कहता है कि दरिया देख आयारोना-धोना सिर्फ़ दिखावा होता हैझूट पर उस के भरोसा कर लियाआइने का साथ प्यारा था कभीइक दिन ख़ुद को अपने पास बिठाया हम नेहमीं तक रह गया क़िस्सा हमारा मुद्दत के बाद उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह आज सोचा तो आँसू भर आए आज सोचा तो आँसू भर आए इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े रूह बेचैन है इक दिल की अज़िय्यत क्या है अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो प्यार का जश्न नई तरह मनाना होगा मैं ने तन्हा कभी उस को देखा नहीं ये बरसात ये मौसम-ए-शादमानी औरतलड़कियों के दुख अजब होते हैं सुख उस से अजीब अपनी ही सदा सुनूँ कहाँ तक शौक़-ए-रक़्स से जब तक उँगलियाँ नहीं खुलतीं हम ने ही लौटने का इरादा नहीं किया डसने लगे हैं ख़्वाब मगर किस से बोलिए तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी पूरा दुख और आधा चाँद ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगेपूरा दुख और आधा चाँद कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी मुझे मालूम था अपने सर्द कमरे में मुझे मत बताना अंदेशों के दरवाज़ों पर इस उम्र के बाद उस को देखा! मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगरजब हुआ इरफ़ाँ तो ग़म आराम-ए-जाँ बनता गया इस अदा से वो जफ़ा करते हैं सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने उज़्र उन की ज़बान से निकला भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करनातन-ए-तन्हा मुक़ाबिल हो रहा हूँ मैं हज़ारों से उम्मीद टूटी हुई है मेरी जो दिल मिरा था वो मर चुका है उन्हें निगाह है अपने जमाल ही की तरफ़ हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता उम्मीद टूटी हुई है मेरी जो दिल मिरा था वो मर चुका हैहाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता ये हमें किसने वर्चस्व की लड़ाई दीबज़्म-ए-जानाँ की रंगत कुछ खास हैगुज़रे हुए वक़्तों का निशाँ था तो कहाँ थाहै कौन किस की ज़ात के अंदर लिखेंगे हम ख़ुद को हर आरज़ू के उस पार कर लिया है जो अब जहान-ए-बरहना का इस्तिआरा हुआ ख़ुद को हर आरज़ू के उस पार कर लिया हैहै कौन किस की ज़ात के अंदर लिखेंगे हमजो अब जहान-ए-बरहना का इस्तिआरा हुआचलो माना कि रोना मसअले का हल नहीं लेकिन लाज़िम है अब कि आप ज़ियादा उदास होंरखते अगर्चे आँख को हैं नम उदास लोग