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GHAZAL

उदासी आसमाँ है दिल मिरा कितना अकेला है

उदासी आसमाँ है दिल मिरा कितना अकेला है

परिंदा शाम के पुल पर बहुत ख़ामोश बैठा है

मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देना

यक़ीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है

तुम्हारे शहर के सारे दिए तो सो गए कब के

हवा से पूछना दहलीज़ पे ये कौन जलता है

अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना

हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है

कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा

मुझे मालूम है क़िस्मत का लिक्खा भी बदलता है

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