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GHAZAL

बज़्म-ए-जानाँ की रंगत कुछ खास है

बज़्म-ए-जानाँ की रंगत कुछ खास है

लेकिन आज रिन्द की तबियत उदास है

कितनी आसान है आदमी की शक्ल

पढ़ता हूँ कि हर चेहरा उदास है

हम नाचते गाते हुए आते थे कभी

आज स्कूल से आते हुए बच्चे उदास है

फूलों के चाहनेवाले के शौक को देख

मुस्कुराती हुई हर कली उदास है

नए ख़्वाब की ताबीर हो चुकी है

आंखों में पुरानी एक तस्वीर उदास है

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