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GHAZAL

जब से उसने खींचा है खिड़की का पर्दा एक तरफ़

जब से उसने खींचा है खिड़की का पर्दा एक तरफ़

उसका कमरा एक तरफ़ है बाक़ी दुनिया एक तरफ़

मैंने अब तक जितने भी लोगों में ख़ुद को बाँटा है

बचपन से रखता आया हूँ तेरा हिस्सा एक तरफ़

एक तरफ़ मुझे जल्दी है उसके दिल में घर करने की

एक तरफ़ वो कर देता है रफ़्ता रफ़्ता एक तरफ़

यूँ तो आज भी तेरा दुख दिल दहला देता है लेकिन

तुझ से जुदा होने के बाद का पहला हफ़्ता एक तरफ़

उसकी आँखों ने मुझसे मेरी ख़ुद्दारी छीनी वरना

पाँव की ठोकर से कर देता था मैं दुनिया एक तरफ़

मेरी मर्ज़ी थी मैं ज़र्रे चुनता या लहरें चुनता

उसने सहरा एक तरफ़ रक्खा और दरिया एक तरफ़

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जब से उसने खींचा है खिड़की का पर्दा एक तरफ़ — Tehzeeb Hafi • ShayariPage