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GHAZAL

जुदाई का ज़माना यूँ ठिकाने लग गया था

जुदाई का ज़माना यूँ ठिकाने लग गया था

बिछड़ कर उससे मैं लिखने लिखाने लग गया था

तभी तो ज़ंग आलूदा हुई तलवार मेरी

मैं दुश्मन पर मुहब्बत आज़माने लग गया था

अभी समझा रहा था वो मुझे बोसे का मतलब

कि मैं शहतूत के रस में नहाने लग गया था

मोहब्बत हो नही पाई तो उसका क्या करूँ मैं

कि मैं तो उस गली में आने जाने लगे गया था

तभी तो मेरी आँखों को नही रोने की आदत

मैं छोटी उम्र में आँसू छुपाने लग गया था

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