शे'र मेरे कहाँ थे किसी के लिए

शे'र मेरे कहाँ थे किसी के लिए

मैंने सब कुछ लिखा है तुम्हारे लिए


अपने दुख सुख बहुत ख़ूबसूरत रहे

हम जिए भी तो इक दूसरे के लिए


हम-सफ़र ने मिरा साथ छोड़ा नहीं

अपने आँसू दिए रास्ते के लिए


इस हवेली में अब कोई रहता नहीं

चाँद निकला किसे देखने के लिए


ज़िंदगी और मैं दो अलग तो नहीं

मैं ने सब फूल काटे इसी से लिए


शहर में अब मिरा कोई दुश्मन नहीं

सब को अपना लिया मैंने तेरे लिए


ज़ेहन में तितलियाँ उड़ रही हैं बहुत

कोई धागा नहीं बाँधने के लिए


एक तस्वीर ग़ज़लों में ऐसी बनी

अगले पिछले ज़मानों के चेहरे लिए