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GHAZAL

निगाहों के तक़ाज़े चैन से मरने नहीं देते

निगाहों के तक़ाज़े चैन से मरने नहीं देते

यहाँ मंज़र ही ऐसे हैं कि दिल भरने नहीं देते

ये लोग औरों के दुख जीने निकल आए हैं सड़कों पर

अगर अपना ही ग़म होता तो यूँ धरने नहीं देते

यही क़तरे जो दम अपना दिखाने पर उतर आते

समुंदर ऐसी मन-मानी तुझे करने नहीं देते

क़लम मैं तो उठा के जाने कब का रख चुका होता

मगर तुम हो के क़िस्सा मुख़्तसर करने नहीं देते

हमीं उन से उमीदें आसमाँ छूने की करते हैं

हमीं बच्चों को अपने फ़ैसले करने नहीं देते

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