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GHAZAL

इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े

इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े

हँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े

जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क

यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े

इक तुम कि तुम को फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ है

इक हम कि चल पड़े तो बहर-हाल चल पड़े

साक़ी सभी को है ग़म-ए-तिश्ना-लबी मगर

मय है उसी की नाम पे जिस के उबल पड़े

मुद्दत के बा'द उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह

जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े

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