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GHAZAL

ये एक बात समझने में रात हो गई है

ये एक बात समझने में रात हो गई है

मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है

मैं अब के साल परिंदों का दिन मनाऊँगा

मिरी क़रीब के जंगल से बात हो गई है

बिछड़ के तुझ से न ख़ुश रह सकूंगा सोचा था

तिरी जुदाई ही वजह-ए-नशात हो गई है

बदन में एक तरफ़ दिन जुलूअ मैं ने किया

बदन के दूसरे हिस्से में रात हो गई है

मैं जंगलों की तरफ़ चल पडा हूंँ छोड़ के घर

ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है

रहेगा याद मदीने से वापसी का सफ़र

मैं नज़्म लिखने लगा था कि नात हो गई है

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ये एक बात समझने में रात हो गई है — Tehzeeb Hafi • ShayariPage