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GHAZAL

क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं

क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं

दोस्ती तो उदास करती नहीं

हम हमेशा के सैर-चश्म सही

तुझ को देखें तो आँख भरती नहीं

शब-ए-हिज्राँ भी रोज़-ए-बद की तरह

कट तो जाती है पर गुज़रती नहीं

ये मोहब्बत है, सुन, ज़माने, सुन!

इतनी आसानियों से मरती नहीं

जिस तरह तुम गुजारते हो फ़राज़

जिंदगी उस तरह गुज़रती नहीं

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