हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता

हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता

लफ़्ज़ मा'ना को पा नहीं सकता

इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद

अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता

होश आरिफ़ की है यही पहचान

कि ख़ुदी में समा नहीं सकता

पोंछ सकता है हम-नशीं आँसू

दाग़-ए-दिल को मिटा नहीं सकता

मुझ को हैरत है उस की क़ुदरत पर

अलम उस को घटा नहीं सकता