आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा

आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा

वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा


इतना मानूस न हो ख़ल्वत-ए-ग़म से अपनी

तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जाएगा


डूबते डूबते कश्ती को उछाला दे दूँ

मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जाएगा


ज़िंदगी तेरी अता है तो ये जाने वाला

तेरी बख़्शिश तिरी दहलीज़ पे धर जाएगा


ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का 'फ़राज़'

ज़ालिम अब के भी न रोएगा तो मर जाएगा