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GHAZAL

किसी भी शहर में जाओ कहीं क़याम करो

किसी भी शहर में जाओ कहीं क़याम करो

कोई फ़ज़ा कोई मंज़र किसी के नाम करो

दुआ सलाम ज़रूरी है शहर वालों से

मगर अकेले में अपना भी एहतिराम करो

हमेशा अम्न नहीं होता फ़ाख़्ताओं में

कभी-कभार उक़ाबों से भी कलाम करो

हर एक बस्ती बदलती है रंग-रूप कई

जहाँ भी सुब्ह गुज़ारो उधर ही शाम करो

ख़ुदा के हुक्म से शैतान भी है आदम भी

वो अपना काम करेगा तुम अपना काम करो

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