ये बरसात ये मौसम-ए-शादमानी

ये बरसात ये मौसम-ए-शादमानी

ख़स-ओ-ख़ार पर फट पड़ी है जवानी

भड़कता है रह रह के सोज़-ए-मोहब्बत

झमाझम बरसता है पुर-शोर पानी


फ़ज़ा झूमती है घटा झूमती है

दरख़्तों को ज़ौ बर्क़ की चूमती है

थिरकते हुए अब्र का जज़्ब तौबा

कि दामन उठाए ज़मीं घूमती है


कड़कती है बिजली चमकती हैं बूँदें

लपकता है कौंदा दमकती हैं बूँदें

रग-ए-जाँ पे रह रह के लगती हैं चोटें

छमा-छम ख़ला में खनकती हैं बूँदें


फ़लक गा रहा है ज़मीं गा रही है

कलेजे में हर लय चुभी जा रही है

मुझे पा के इस मस्त शब में अकेला

ये रंगीं घटा तीर बरसा रही है


चमकता है बुझता है थर्रा रहा है

भटकने की जुगनू सज़ा पा रहा है

अभी ज़ेहन में था ये रौशन तख़य्युल

फ़ज़ा में जो उड़ता चला जा रहा है


लचक कर सँभलते हैं जब अब्र-पारे

बरसते हैं दामन से दुम-दार तारे

मचलती है रह रह के बालों में बिजली

गुलाबी हुए जा रहे हैं किनारे


फ़ज़ा झूम कर रंग बरसा रही है

हर इक साँस शोला बनी जा रही है

कभी इस तरह याद आती नहीं थी

वो जिस तरह इस वक़्त याद आ रही है


भला लुत्फ़ क्या मंज़र-ए-पुर-असर दे

कि अश्कों ने आँखों पे डाले हैं पर्दे

कहीं और जा कर बरस मस्त बादल

ख़ुदा तेरा दामन जवाहिर से भर दे