Shayari Page
GHAZAL

पैरों को मिरे दीदा-ए-तर बाँधे हुए है

पैरों को मिरे दीदा-ए-तर बाँधे हुए है

ज़ंजीर की सूरत मुझे घर बाँधे हुए है

हर चेहरे में आता है नज़र एक ही चेहरा

लगता है कोई मेरी नज़र बाँधे हुए है

बिछड़ेंगे तो मर जाएँगे हम दोनों बिछड़ कर

इक डोर में हम को यही डर बाँधे हुए है

पर्वाज़ की ताक़त भी नहीं बाक़ी है लेकिन

सय्याद अभी तक मिरे पर बाँधे हुए है

हम हैं कि कभी ज़ब्त का दामन नहीं छोड़ा

दिल है कि धड़कने पे कमर बाँधे हुए है

आँखें तो उसे घर से निकलने नहीं देतीं

आँसू है कि सामान-ए-सफ़र बाँधे हुए है

फेंकी न 'मुनव्वर' ने बुज़ुर्गों की निशानी

दस्तार पुरानी है मगर बाँधे हुए है

Comments

Loading comments…
पैरों को मिरे दीदा-ए-तर बाँधे हुए है — Munawwar Rana • ShayariPage