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GHAZAL

झूट पर उस के भरोसा कर लिया

झूट पर उस के भरोसा कर लिया

धूप इतनी थी कि साया कर लिया

अब हमारी मुश्किलें कुछ कम हुईं

दुश्मनों ने एक चेहरा कर लिया

हाथ क्या आया सजा कर महफ़िलें

और भी ख़ुद को अकेला कर लिया

हारने का हौसला तो था नहीं

जीत में दुश्मन की हिस्सा कर लिया

मंज़िलों पर हम मिलें ये तय हुआ

वापसी में साथ पक्का कर लिया

सारी दुनिया से लड़े जिस के लिए

एक दिन उस से भी झगड़ा कर लिया

क़ुर्ब का उस के उठा कर फ़ाएदा

हिज्र का सामाँ इकट्ठा कर लिया

गुफ़्तुगू से हल तो कुछ निकला नहीं

रंजिशों को और ताज़ा कर लिया

मोल था हर चीज़ का बाज़ार में

हम ने तन्हाई का सौदा कर लिया

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झूट पर उस के भरोसा कर लिया — Shariq Kaifi • ShayariPage