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GHAZAL

पूरा दुख और आधा चाँद

पूरा दुख और आधा चाँद

हिज्र की शब और ऐसा चाँद

दिन में वहशत बहल गई

रात हुई और निकला चाँद

किस मक़्तल से गुज़रा होगा

इतना सहमा सहमा चाँद

यादों की आबाद गली में

घूम रहा है तन्हा चाँद

मेरी करवट पर जाग उठ्ठे

नींद का कितना कच्चा चाँद

मेरे मुँह को किस हैरत से

देख रहा है भोला चाँद

इतने घने बादल के पीछे

कितना तन्हा होगा चाँद

आँसू रोके नूर नहाए

दिल दरिया तन सहरा चाँद

इतने रौशन चेहरे पर भी

सूरज का है साया चाँद

जब पानी में चेहरा देखा

तू ने किस को सोचा चाँद

बरगद की इक शाख़ हटा कर

जाने किस को झाँका चाँद

बादल के रेशम झूले में

भोर समय तक सोया चाँद

रात के शाने पर सर रक्खे

देख रहा है सपना चाँद

सूखे पत्तों के झुरमुट पर

शबनम थी या नन्हा चाँद

हाथ हिला कर रुख़्सत होगा

उस की सूरत हिज्र का चाँद

सहरा सहरा भटक रहा है

अपने इश्क़ में सच्चा चाँद

रात के शायद एक बजे हैं

सोता होगा मेरा चाँद

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पूरा दुख और आधा चाँद — Parveen Shakir • ShayariPage