"आदमी की तलाश"

"आदमी की तलाश"


अभी मरा नहीं ज़िंदा है आदमी शायद

यहीं कहीं उसे ढूँडो यहीं कहीं होगा

बदन की अंधी गुफा में छुपा हुआ होगा

बढ़ा के हाथ

हर इक रौशनी को गुल कर दो

हवाएँ तेज़ हैं झँडे लपेट कर रख दो

जो हो सके तो उन आँखों पे पट्टियाँ कस दो

न कोई पाँव की आहट

न साँसों की आवाज़

डरा हुआ है वो

कुछ और भी न डर जाए

बदन की अंधी गुफा से न कूच कर जाए

यहीं कहीं उसे ढूँडो

वो आज सदियों बाद

उदास उदास है

ख़ामोश है

अकेला है

न जाने कब कोई पसली फड़क उठे उस की

यहीं कहीं उसे ढूँडो यहीं कहीं होगा

बरहना हो तो उसे फिर लिबास पहना दो

अँधेरी आँखों में सूरज की आग दहका दो

बहुत बड़ी है ये बस्ती कहीं भी दफ़ना दो

अभी मरा नहीं

ज़िंदा है आदमी शायद