ये कैसी कश्मकश है ज़िंदगी में

ये कैसी कश्मकश है ज़िंदगी में

किसी को ढूँडते हैं हम किसी में

जो खो जाता है मिल कर ज़िंदगी में

ग़ज़ल है नाम उस का शाएरी में

निकल आते हैं आँसू हँसते हँसते

ये किस ग़म की कसक है हर ख़ुशी में

कहीं चेहरा कहीं आँखें कहीं लब

हमेशा एक मिलता है कई में

चमकती है अंधेरों में ख़मोशी

सितारे टूटते हैं रात ही में

सुलगती रेत में पानी कहाँ था

कोई बादल छुपा था तिश्नगी में

बहुत मुश्किल है बंजारा-मिज़ाजी

सलीक़ा चाहिए आवारगी में