मेरी नजर के सलीके में क्या नहीं आता

मेरी नजर के सलीके में क्या नहीं आता

बस इक तेरी तरफ ही देखना नहीं आता

अकेले चलना तो मेरा नसीब था कि मुझे

किसी के साथ सफर बांटना नहीं आता

उधर तो जाते हैं रस्ते तमाम होने को

इधर से हो के कोई रास्ता नहीं आता

जगाना आता है उसको तमाम तरीकों से

घरों पे दस्तकें देने ख़ुदा नहीं आता

यहां पे तुम ही नहीं आस पास और भी हैं

पर उस तरह से तुम्हें सोचना नहीं आता

पड़े रहो यूं ही सहमे हुए दियों की तरह

अगर हवाओं के पर बांधना नहीं आता