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GHAZAL

मेरी नजर के सलीके में क्या नहीं आता

मेरी नजर के सलीके में क्या नहीं आता

बस इक तेरी तरफ ही देखना नहीं आता

अकेले चलना तो मेरा नसीब था कि मुझे

किसी के साथ सफर बांटना नहीं आता

उधर तो जाते हैं रस्ते तमाम होने को

इधर से हो के कोई रास्ता नहीं आता

जगाना आता है उसको तमाम तरीकों से

घरों पे दस्तकें देने ख़ुदा नहीं आता

यहां पे तुम ही नहीं आस पास और भी हैं

पर उस तरह से तुम्हें सोचना नहीं आता

पड़े रहो यूं ही सहमे हुए दियों की तरह

अगर हवाओं के पर बांधना नहीं आता

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