Shayari Page
GHAZAL

कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे

कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे

जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे

मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का

इरादा मैं ने किया था कि छोड़ दूँगा उसे

बदन चुरा के वो चलता है मुझ से शीशा-बदन

उसे ये डर है कि मैं तोड़ फोड़ दूँगा उसे

पसीने बाँटता फिरता है हर तरफ़ सूरज

कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूँगा उसे

मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को

समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे

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