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GHAZAL

रूह जिस्म का ठौर ठिकाना चलता रहता है

रूह जिस्म का ठौर ठिकाना चलता रहता है

जीना मरना खोना पाना चलता रहता है

सुख दुख वाली चादर घटती बढ़ती रहती है

मौला तेरा ताना वाना चलता रहता है

इश्क़ करो तो जीते जी मर जाना पड़ता है

मर कर भी लेकिन जुर्माना चलता रहता है

जिन नज़रों ने काम दिलाया ग़ज़लें कहने का

आज तलक उनको नज़राना चलता रहता है

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