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GHAZAL

वो ज़माना गुज़र गया कब का

वो ज़माना गुज़र गया कब का

था जो दीवाना मर गया कब का

ढूँढता था जो इक नई दुनिया

लौट के अपने घर गया कब का

वो जो लाया था हम को दरिया तक

पार अकेले उतर गया कब का

उस का जो हाल है वही जाने

अपना तो ज़ख़्म भर गया कब का

ख़्वाब-दर-ख़्वाब था जो शीराज़ा

अब कहाँ है बिखर गया कब का

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वो ज़माना गुज़र गया कब का — Javed Akhtar • ShayariPage