मुझे बहुत है के मैं भी शामिल हूँ तेरी जुल्फों की ज़ाइरीनों में,

मुझे बहुत है के मैं भी शामिल हूँ तेरी जुल्फों की ज़ाइरीनों में,

जो अमावस की काली रातों का रिज़्क़ बनने से बच गए,

मुझे कसम है उदास रातों में डसने वाले यतीम साँपों की ज़हर-आलूद ज़िंदगी की,

तेरे छुए जिस्म बिस्तर-ए-मर्ग पर पड़े हैं,

तेरे लबों की ख़फ़ीफ़ जुंबिश से ज़लज़लों ने ज़मीं का ज़ेवर उतार फेंका,

तेरी दरख्शाँ हथेलियों पर बदलते मौसम के जायकों से पता चला है के इस त'अल्लुक़ की सर जमीं पर खीजा बहुत देर तक रहेगी,

मैं जानता हूँ के मैंने ममनू शाहों से हो के ऐसे बहुत से बाबों की सैर की है जहाँ से तू रोकती बहुत थी,

ये हाथ जिनको तेरे बदन की चमक ने बरसो निढ़ाल रक्खा,

हराम है के इन्होंने शाखों से फूल तोड़े हो,

या किसी भी पेड़ के लचकदार बाजुओं से किसी भी मौसम का फ़ल उतारा हो,

और अगर ऐसा हो भी जाता तो फिर भी तेरी शरिष्त में इंतकाम कब है,

अभी मोहब्बत की सुबह रोशन है शाम कब है,

ये दिल के शीशे पर पड़ने वाली मलाल की धूल साफ़ कर दे,

मैं तुझ से छुप कर अगर किसी से मिला तो मुझे मुआफ़ कर दे,