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GHAZAL

मैंने चाहा तो नहीं था कि कभी ऐसा हो

मैंने चाहा तो नहीं था कि कभी ऐसा हो

लेकिन अब ठान चुके हो तो चलो अच्छा हो

तुम से नाराज़ तो मैं और किसी बात पे हूँ

तुम मगर और किसी वजह से शर्मिंदा हो

अब कहीं जा के ये मालूम हुआ है मुझको

ठीक रह जाता है जो शख़्स तेरे जैसा हो

ऐसे हालात में हो भी कोई हस्सास तो क्या

और बे-हिस भी अगर हो तो कोई कितना हो

ताकि तू समझे कि मर्दों के भी दुख होते हैं

मैंने चाहा भी यही था कि तेरा बेटा हो

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