वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ

वो शब-ओ-रोज़ ओ माह-ओ-साल कहाँ


फ़ुर्सत-ए-कारोबार-ए-शौक़ किसे

ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा-ए-जमाल कहाँ


दिल तो दिल वो दिमाग़ भी न रहा

शोर-ए-सौदा-ए-ख़त्त-ओ-ख़ाल कहाँ


थी वो इक शख़्स के तसव्वुर से

अब वो रानाई-ए-ख़याल कहाँ


ऐसा आसाँ नहीं लहू रोना

दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ


हम से छूटा क़िमार-ख़ाना-ए-इश्क़

वाँ जो जावें गिरह में माल कहाँ


फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ

मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ


मुज़्महिल हो गए क़वा ग़ालिब

वो अनासिर में ए'तिदाल कहाँ


बोसे में वो मुज़ाइक़ा न करे

पर मुझे ताक़त-ए-सवाल कहाँ


फ़लक-ए-सिफ़्ला बे-मुहाबा है

इस सितम-गर को इंफ़िआल कहाँ