है कौन किस की ज़ात के अंदर लिखेंगे हम
है कौन किस की ज़ात के अंदर लिखेंगे हम
नहर-ए-रवाँ को प्यास का मंज़र लिखेंगे हम
ये सारा शहर आला-ए-हिकमत लिखे उसे
ख़ंजर अगर है कोई तो ख़ंजर लिखेंगे हम
अब तुम सिपास-नामा-ए-शमशीर लिख चुके
अब दास्तान-ए-लाशा-ए-बे-सर लिखेंगे हम
रक्खी हुई है दोनों की बुनियाद रेत पर
सहरा-ए-बे-कराँ को समुंदर लिखेंगे हम
इस शहर-ए-बे-चराग़ की आँधी न हो उदास
तुझ को हवा-ए-कूचा-ए-दिल-बर लिखेंगे हम
क्या हुस्न उन लबों में जो प्यासे नहीं रहे
सूखे हुए लबों को गुल-ए-तर लिखेंगे हम
हम से गुनाहगार भी उस ने निभा लिए
जन्नत से यूँ ज़मीन को बेहतर लिखेंगे हम