हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए

हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए

कभी तो हौसला कर के नहीं कहा जाए

तुम्हारा घर भी इसी शहर के हिसार में है

लगी है आग कहाँ क्यूँ पता किया जाए

जुदा है हीर से राँझा कई ज़मानों से

नए सिरे से कहानी को फिर लिखा जाए

कहा गया है सितारों को छूना मुश्किल है

ये कितना सच है कभी तजरबा किया जाए

किताबें यूँ तो बहुत सी हैं मेरे बारे में

कभी अकेले में ख़ुद को भी पढ़ लिया जाए