या रब मुआ'फ़ कर के न दे कर्ब-ए-इंफ़िआल 

या रब मुआ'फ़ कर के न दे कर्ब-ए-इंफ़िआल 

मैं ने ख़ताएँ की हैं सज़ा चाहिए मुझे 

ख़ामोशी-ए-हयात से उकता गया हूँ मैं 

अब चाहे दिल ही टूटे सदा चाहिए मुझे 

उन मस्त मस्त आँखों में आँसू अरे ग़ज़ब 

ये इश्क़ है तो क़हर-ए-ख़ुदा चाहिए मुझे 

नासेह नसीहतों का ज़माना गुज़र गया 

अब प्यारे सिर्फ़ तेरी दुआ चाहिए मुझे 

हर दर्द को दवा की ज़रूरत है ऐ 'ख़ुमार' 

जो दर्द ख़ुद हो अपनी दवा चाहिए मुझे