हम यूँ ही नहीं शह के अज़ादार हुए हैं
हम यूँ ही नहीं शह के अज़ादार हुए हैं
नस्ली हैं तो अस्ली के परस़्तार हुए हैं
तोहमत तो लगा देते हो बेकारी की हमपर
पूछो तो सही किसलिए बेकार हुए हैं
सब आके मुझे कहते हैं मुर्शिद कोई चारा
जिस जिस को दर ए यार से इन्कार हुए हैं
ये वो हैं जिन्हें मैंने सुख़न करना सिखाया
ये लहजे मेरे सामने तलवार हुए हैं
मिलने तो अकेले ही उसे जाना है "ज़रयून"
ये दोस्त मगर किसलिए तैयार हुए हैं?