GHAZAL•
हम यूँ ही नहीं शह के अज़ादार हुए हैं
By Ali Zaryoun
हम यूँ ही नहीं शह के अज़ादार हुए हैं
नस्ली हैं तो अस्ली के परस़्तार हुए हैं
तोहमत तो लगा देते हो बेकारी की हमपर
पूछो तो सही किसलिए बेकार हुए हैं
सब आके मुझे कहते हैं मुर्शिद कोई चारा
जिस जिस को दर ए यार से इन्कार हुए हैं
ये वो हैं जिन्हें मैंने सुख़न करना सिखाया
ये लहजे मेरे सामने तलवार हुए हैं
मिलने तो अकेले ही उसे जाना है "ज़रयून"
ये दोस्त मगर किसलिए तैयार हुए हैं?