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GHAZAL

आईने आंख में चुभते थे बिस्तर से बदन कतराता था

आईने आंख में चुभते थे बिस्तर से बदन कतराता था

एक याद बसर करती थी मुझे मै सांस नहीं ले पाता था

एक शख्स के हाथ में था सब कुछ मेरा खिलना भी मुरझाना भी

रोता था तो रात उजड़ जाती हंसता था तो दिन बन जाता था

मै रब से राब्ते में रहता मुमकिन है की उस से राब्ता हो

मुझे हाथ उठाना पड़ते थे तब जाकर वो फोन उठाता था

मुझे आज भी याद है बचपन में कभी उस पर नजर अगर पड़ती

मेरे बस्ते से फूल बरसते थे मेरी तख्ती पे दिल बन जाता था

हम एक ज़िंदान में जिंदा थे हम एक जंजीर में बढ़े हुए

एक दूसरे को देख कर हम कभी हंसते थे तो रोना आता था

वो जिस्म नजरअंदाज नहीं हो पाता था इन आंखों से

मुजरिम ठहराता था अपना कहने को तो घर ठहराता था

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आईने आंख में चुभते थे बिस्तर से बदन कतराता था — Tehzeeb Hafi • ShayariPage