वो ख़ुश-लिबास भी ख़ुश-दिल भी ख़ुश-अदा भी है

वो ख़ुश-लिबास भी ख़ुश-दिल भी ख़ुश-अदा भी है

मगर वो एक है क्यूँ उस से ये गिला भी है


हमेशा मंदिर-ओ-मस्जिद में वो नहीं रहता

सुना है बच्चों में छुप कर वो खेलता भी है


न जाने एक में उस जैसे और कितने हैं

वो जितना पास है उतना ही वो जुदा भी है


वही अमीर जो रोज़ी-रसाँ है आलम का

फ़क़ीर बन के कभी भीक माँगता भी है


अकेला होता तो कुछ और फ़ैसला होता

मिरी शिकस्त में शामिल मिरी दुआ भी है