यूँ लग रहा है जैसे कोई आस-पास है

यूँ लग रहा है जैसे कोई आस-पास है

वो कौन है जो है भी नहीं और उदास है


मुमकिन है लिखने वाले को भी ये ख़बर न हो

क़िस्से में जो नहीं है वही बात ख़ास है


माने न माने कोई हक़ीक़त तो है यही

चर्ख़ा है जिस के पास उसी की कपास है


इतना भी बन-सँवर के न निकला करे कोई

लगता है हर लिबास में वो बे-लिबास है


छोटा बड़ा है पानी ख़ुद अपने हिसाब से

उतनी ही हर नदी है यहाँ जितनी प्यास है