"खिलौना"

"खिलौना"

देर से एक ना-समझ बच्चा

इक खिलौने के टूट जाने पर

इस तरह से उदास बैठा है

जैसे मय्यत क़रीब रक्खी हो

और मरने के बा'द हर हर बात

मरने वाले की याद आती हो

जाने क्या क्या ज़रा तवक़्क़ुफ़ से

सोच लेता है और रोता है

लेकिन इतनी ख़बर कहाँ उस को

ज़िंदगी के अजीब हाथों में

ये भी मिट्टी का इक खिलौना है