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Love Shayari 2020

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10 Feb 2025

Shayari

ये फ़िल्मों में ही सबको प्यार मिल जाता है आख़िर मेंउस लड़की से बस अब इतना रिश्ता हैअब मज़ीद उससे ये रिश्ता नहीं रक्खा जाताख़्वाबों को आँखों से मिन्हा करती हैघर में भी दिल नहीं लग रहा काम पर भी नहीं जा रहाआईने आँख में चुभते थे बिस्तर से बदन कतराता थामैं सुख़न में हूँ उस जगह कि जहाँ भुला दिया था जिसको एक शाम याद आ गयाख़्वाबों को आँखों से मिन्हा करती हैअब मजीद उससे ये रिश्ता नहीं रखा जाताआईने आंख में चुभते थे बिस्तर से बदन कतराता था अश्क़ ज़ाया हो रहे थे, देख कर रोता न थाइक तिरा हिज्र दाइमी है मुझेकितना अर्सा लगा ना-उमीदी के पर्बत से पत्थर हटाते हुए आप अपने से हम-सुख़न रहनाअपना रिश्ता ज़मीं से ही रक्खोअपनी मंज़िल का रास्ता भेजो कोई दम भी मैं कब अंदर रहा हूँअपनी मंज़िल का रास्ता भेजोएक ही मुज़्दा सुब्ह लाती हैनया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे"दरीचा-हा-ए-ख़याल""दरख़्त-ए-ज़र्द""ख़ल्वत""रातें सच्ची हैं दिन झूटे हैं"सर पर सात आकाश ज़मीं पर सात समुंदर बिखरे हैं जा के ये कह दे कोई शोलों से चिंगारी से दोस्ती जब किसी से की जाए सब को रुस्वा बारी बारी किया करोज़िंदगी की हर कहानी बेअसर हो जाएगीतिरी सम्त जाने का रास्ता नहीं हो रहा तुम सर्वत को पढ़ती हो चमकते दिन बहुत चालाक है शब जानती है"दोस्त के नाम ख़त"चल ख़्वाहिश की बात करेंगेये मोहब्बत का फ़साना भी बदल जाएगा तुम्हारा प्यार तो साँसों में साँस लेता हैमैं आसमाँ पे बहुत देर रह नहीं सकता ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद हमारी है चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो मैं इस उमीद पे डूबा कि तू बचा लेगा"वह जानते ही नहीं"उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआदुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहेंजिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम होज़ख़्म को फूल तो सर-सर को सबा कहते हैसंसार की हर शय का इतना ही फ़साना है इतनी हसीन इतनी जवाँ रात क्या करें मेरे ख़्वाबों के झरोकों को सजाने वालीताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही दिल से साबित करो कि ज़िंदा होघर बनाना बहोत ज़रूरी है शहर के दुकाँ-दारो कारोबार-ए-उल्फ़त में सूद क्या ज़ियाँ क्या है तुम न जान पाओगेख़ला के गहरे समुंदरों में ये आए दिन के हंगामे गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले मैं क्या लिखूँ कि जो मेरा तुम्हारा रिश्ता है इक ज़रा सोचने दो इस वक़्त तो यूँ लगता है अब कुछ भी नहीं है और कुछ देर में जब फिर मिरे तन्हा दिल को मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग आ कि वाबस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझ से इस वक़्त तो लगता है कि अब कुछ भी नहीं हैमुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँगदरगुज़र जितना किया है वही काफ़ी है मुझेटूटने पर कोई आए तो फिर ऐसा टूटेइतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरीवो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे ये चराग़ बे-नज़र है ये सितारा बे-ज़बाँ हैशो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्याआँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखासगी बहनों का जो रिश्ता रिश्ता है उर्दू और हिन्दी मेंमहफ़िल में आज मर्सिया-ख़्वानी ही क्यूँ न होजुदा रहता हूँ मैं तुझ से तो दिल बे-ताब रहता हैदुनिया तिरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँजब भी आँखों में अश्क भर आएकोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती हैशाम से आज सांस भारी हैहर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिएऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होताशाम से आँख में नमी सी हैदर्द हल्का है साँस भारी हैदुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता ज़िहानतों को कहाँ कर्ब से फ़रार मिलातन्हा हुए ख़राब हुए आइना हुएकोई किसी से ख़ुश हो और वो भी बारहा हो ये बात तो ग़लत हैउठ के कपड़े बदल घर से बाहर निकल जो हुआ सो हुआकुछ तबीअ'त ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत न हुईकोशिश के बावजूद ये इल्ज़ाम रह गयाहर तरफ़ हर जगह बे-शुमार आदमी दरिया हो या पहाड़ हो टकराना चाहिए "वालिद की वफ़ात पर"इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना हैहम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा वक़्त-ए-ग़ुरूब आज करामात हो गई अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँही कभू लब खोलें हैं आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी मिरी सदा है गुल-ए-शम्-ए-शाम-ए-आज़ादी "शर्म कर लो""चाँदनी चौक की फ़ैक्टरी और मज़दूर"रोज़ का इक मश्ग़ला कुछ देर का सूना आँगन नींद में ऐसे चौंक उठा हैकोई कुछ भी कहता रहे सब ख़ामोशी से सुन लेता हैतन से जब तक साँस का रिश्ता रहेगाकम से कम दुनिया से इतना मिरा रिश्ता हो जाएइक यही सोज़-ए-निहाँ कुल मिरा सरमाया है ऐ हमा-रंग हमा-नूर हमा-सोज़-ओ-गुदाज़ ये बरसात ये मौसम-ए-शादमानी कोई ये कैसे बताए कि वो तन्हा क्यूँ है अगरचे तुझ से बहुत इख़्तिलाफ़ भी न हुआ मुझे मालूम था इस अदा से वो जफ़ा करते हैं काबे की है हवस कभी कू-ए-बुताँ की है अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता हैहंगामा है क्या बरपा थोड़ी सी जो पी ली है साँस लेते हुए भी डरता हूँ हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए उम्मीद टूटी हुई है मेरी जो दिल मिरा था वो मर चुका है हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है उम्मीद टूटी हुई है मेरी जो दिल मिरा था वो मर चुका हैहंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है इसी उलझन में उम्र सारी बसर की