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GHAZAL

जा के ये कह दे कोई शोलों से चिंगारी से

जा के ये कह दे कोई शोलों से चिंगारी से

फूल इस बार खिले हैं बड़ी तय्यारी से

अपनी हर साँस को नीलाम किया है मैं ने

लोग आसान हुए हैं बड़ी दुश्वारी से

ज़ेहन में जब भी तिरे ख़त की इबारत चमकी

एक ख़ुश्बू सी निकलने लगी अलमारी से

शाहज़ादे से मुलाक़ात तो ना-मुम्किन है

चलिए मिल आते हैं चल कर किसी दरबारी से

बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के न लिए

हम ने ख़ैरात भी माँगी है तो ख़ुद्दारी से

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जा के ये कह दे कोई शोलों से चिंगारी से — Rahat Indori • ShayariPage