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GHAZAL

जब भी आँखों में अश्क भर आए

जब भी आँखों में अश्क भर आए

लोग कुछ डूबते नज़र आए

अपना मेहवर बदल चुकी थी ज़मीं

हम ख़ला से जो लौट कर आए

चाँद जितने भी गुम हुए शब के

सब के इल्ज़ाम मेरे सर आए

चंद लम्हे जो लौट कर आए

रात के आख़िरी पहर आए

एक गोली गई थी सू-ए-फ़लक

इक परिंदे के बाल-ओ-पर आए

कुछ चराग़ों की साँस टूट गई

कुछ ब-मुश्किल दम-ए-सहर आए

मुझ को अपना पता-ठिकाना मिले

वो भी इक बार मेरे घर आए

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