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NAZM

"शर्म कर लो"

"शर्म कर लो"

ज़िंदा हो हाँ तुम कोई शक नहीं

साँस लेते हुए देखा मैंने भी है

हाथ औ’ पैरों और जिस्म को हरकतें

ख़ूब देते हुए देखा मैंने भी है

अब भले हो ये करते हुए होंठ तुम

दर्द सहते हुए सख़्त सी लेते हो

अब है इतना भी कम क्या तुम्हारे लिए

ख़ूब अपनी समझ में तो जी लेते हो

गहराती रातों में उठती कराहट को

अंदर ही अंदर दबाते तो होगे

अगली सुबह फिर बरसने को बेताब

कोड़ों को दिल में सजाते तो होगे

ज़माने की ठोकर को सह के सड़क पे यूँ

चीख़ों को दिल में सजाते तो होगे

ज़माने की ठोकर को सह के सड़क पे यूँ

चीख़ों की ज़हमत उठाते तो होगे

रोते से चेहरे पे लटकी-सी गर्दन का

थोड़ा इज़ाफ़ा बढ़ाते तो होगे

सोचा कभी है कि ज़िंदा यूँ रहने के

मतलब के माने हैं कैसे कहीं

ज़िंदा यूँ रहने के माने पे थूकें जो

ज़िंदा यूँ रहने का मतलब यही

बदबू को बलग़म को ख़ुशबू की मरहम

बता के भरम में हो मल-मल रहे

कीड़ा है वो संग कीड़ों की दुनिया में

कीड़ा ही बन के जो हर पल रहे

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"शर्म कर लो" — Piyush Mishra • ShayariPage