"चाँदनी चौक की फ़ैक्टरी और मज़दूर"

"चाँदनी चौक की फ़ैक्टरी और मज़दूर"

गिटर-पिटर यूँ धूँ-धक्कड़

ये गुत्थम-गुत्थी चटर-पटर

ये दंगल लाशें ज़ोर-जबर

ये हड्डी घिस के चरर-परर...

पट्ठे उठ जा तू ताल ठोक

ये पसली में जा घुसी नोक

ये खाँसी तगड़ी ज़ोरदार

ये एसिड संग में कोलतार...

अजब दास्ताँ है लेकिन

ये घिसती रातें पिसते दिन

दिन का पहिया रात का चक्का

रेशा-रेशा हक्क-बक्का...!

ये पीठ है लकड़ी सख़त-सख़त

ये सौ मन बोरी पटक-पटक

ये काली-काली क्रीम जमा

ये पॉलिश कर के खाए दमा...

अरे उठ साले कि दिन चढ़ता

फिर आई दुपहरी देख भरी

ये खौं-खौं खाँसी रेत भरी...

अजब दास्ताँ है लकिन

ये घिसती रातें पिसते दिन

दिन का पहिया रात का चक्का

रेशा-रेशा हक्का-बक्का...!

ये निकला बलग़म थूकों में

इक रोटी है सौ भूखों में

उस पे हैं क़र्ज़े लाख चढ़े

ये सूद-ब्याज बिंदास बढ़े

भट्ठी की चाँदनी चम-चम-चम

इक हुआ फेफड़ा कम-कम-कम

स्टील कटर से कटे हाथ

तेज़ाब गटर नायाब साथ

अजब दास्ताँ है लेकिन

ये घिसती रातें पिसते दिन

दिन का पहिया रात का चक्का

रेशा-रेशा हक्का-बक्का...!

ना ग्लास मास्क ना चश्मा भई

लाशों के ढेर पे सपना भई

सीलन घुटती अब सड़न-सड़न

बदबू साँसें अरे व्हाट ए फ़न...

फिर दिन टूटा फिर शाम बढ़ी

फिर सूनी सुनसाँ रात चढ़ी

ये बदन टूट पुर्ज़ा-पुर्ज़ा

ये थकन कहे मर जा मर जा...

अजब दास्ताँ है लेकिन

ये घिसती रातें पिसते दिन

दिन का पहिया रात का चक्का

रेशा-रेशा हक्का-बक्का...!

साले कुत्ते हर्रामी तू

बदज़ात चोर है नामी तू

तेज़ाब जलन पस फफ्फोले

इक रात बिताने घर हो ले...

भट्ठी की आग में मांस जला

ये खाल खिंची और साँस जला

ये पेट कटी आँतें बोलें

आधी पूरी बातें बोलें...

अजब दास्ताँ है लेकिन

ये घिसती रातें पिसते दिन

दिन का पहिया रात का चक्का

रेशा-रेशा हक्का-बक्का...