महफ़िल में आज मर्सिया-ख़्वानी ही क्यूँ न हो

महफ़िल में आज मर्सिया-ख़्वानी ही क्यूँ न हो

आँखों से बहने दीजिए पानी ही क्यूँ न हो

नश्शे का एहतिमाम से रिश्ता नहीं कोई

पैग़ाम उस का आए ज़बानी ही क्यूँ न हो

ऐसे ये ग़म की रात गुज़रना मुहाल है

कुछ भी सुना मुझे वो कहानी ही क्यूँ न हो

कोई भी साथ देता नहीं उम्र-भर यहाँ

कुछ दिन रहेगी साथ जवानी ही क्यूँ न हो

इस तिश्नगी की क़ैद से जैसे भी हो निकाल

पीने को कुछ भी चाहिए पानी ही क्यूँ न हो