ज़ख़्म को फूल तो सर-सर को सबा कहते है

ज़ख़्म को फूल तो सर-सर को सबा कहते है

जाने क्या दौर है क्या लोग हैं क्या कहते हैं

अब कयामत है कि जिनके लिए रूक-रूक के चले

अब वही लोग हमें आबला-पा कहते हैं

कोई बतलाओ कि एक उम्र का बिछडा महबूब

इतिफाकन कहीं मिल जाए तो क्या कहते हैं

यह भी अंदाजे-सुखन है कि जफा को तेरी

गमज़ा-व-इशवा-व-अंदाज-ओ-अदा कहते हैं

जब तलक दूर है तू तेरी परसितश कर लें

हम जिसे छू न सकें उसको खुदा कहते हैं

क्या ताज्जुब है कि हम अहले-तमन्ना को ‘फराज़’

वह जो महरूम-ए-तमन्ना हैं बुरा कहते हैं