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GHAZAL

सब को रुस्वा बारी बारी किया करो

सब को रुस्वा बारी बारी किया करो

हर मौसम में फ़तवे जारी किया करो

रातों का नींदों से रिश्ता टूट चुका

अपने घर की पहरे-दारी किया करो

क़तरा क़तरा शबनम गिन कर क्या होगा

दरियाओं की दावे-दारी किया करो

रोज़ क़सीदे लिक्खो गूँगे बहरों के

फ़ुर्सत हो तो ये बेगारी किया करो

शब भर आने वाले दिन के ख़्वाब बुनो

दिन भर फ़िक्र-ए-शब-बेदारी किया करो

चाँद ज़ियादा रौशन है तो रहने दो

जुगनू-भय्या जी मत भारी किया करो

जब जी चाहे मौत बिछा दो बस्ती में

लेकिन बातें प्यारी प्यारी किया करो

रात बदन-दरिया में रोज़ उतरती है

इस कश्ती में ख़ूब सवारी किया करो

रोज़ वही इक कोशिश ज़िंदा रहने की

मरने की भी कुछ तय्यारी किया करो

ख़्वाब लपेटे सोते रहना ठीक नहीं

फ़ुर्सत हो तो शब-बेदारी किया करो

काग़ज़ को सब सौंप दिया ये ठीक नहीं

शेर कभी ख़ुद पर भी तारी किया करो

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सब को रुस्वा बारी बारी किया करो — Rahat Indori • ShayariPage