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GHAZAL

हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए

हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए

दो दिन की ज़िंदगी में हज़ारों बरस जिए

सदियों पे इख़्तियार नहीं था हमारा दोस्त

दो चार लम्हे बस में थे दो चार बस जिए

सहरा के उस तरफ़ से गए सारे कारवाँ

सुन सुन के हम तो सिर्फ़ सदा-ए-जरस जिए

होंटों में ले के रात के आँचल का इक सिरा

आँखों पे रख के चाँद के होंटों का मस जिए

महदूद हैं दुआएँ मिरे इख़्तियार में

हर साँस पुर-सुकून हो तू सौ बरस जिए

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हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए — Gulzar • ShayariPage