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GHAZAL

जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा

जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा

तपिश-ए-शौक़ ने हर ज़र्रे पे इक दिल बाँधा

अहल-ए-बीनश ने ब-हैरत-कदा-ए-शोख़ी-ए-नाज़

जौहर-ए-आइना को तूती-ए-बिस्मिल बाँधा

यास ओ उम्मीद ने यक-अरबदा मैदाँ माँगा

इज्ज़-ए-हिम्मत ने तिलिस्म-ए-दिल-ए-साइल बाँधा

न बंधे तिश्नगी-ए-ज़ौक़ के मज़मूँ 'ग़ालिब'

गरचे दिल खोल के दरिया को भी साहिल बाँधा

इस्तिलाहात-ए-असीरान-ए-तग़ाफ़ुल मत पूछ

जो गिरह आप न खोली उसे मुश्किल बाँधा

यार ने तिश्नगी-ए-शौक़ के मज़मूँ चाहे

हम ने दिल खोल के दरिया को भी साहिल बाँधा

तपिश-आईना परवाज़-ए-तमन्ना लाई

नामा-ए-शौक़ ब-हाल-ए-दिल-ए-बिस्मिल बाँधा

दीदा ता-दिल है यक-आईना चराग़ाँ किस ने

ख़ल्वत-ए-नाज़ पे पैराया-ए-महफ़िल बाँधा

ना-उमीदी ने ब-तक़रीब-ए-मज़ामीन-ए-ख़ुमार

कूच-ए-मौज को ख़म्याज़ा-ए-साहिल बाँधा

मुतरिब-ए-दिल ने मिरे तार-ए-नफ़स से 'ग़ालिब'

साज़ पर रिश्ता पए नग़्मा-ए-'बेदिल' बाँधा

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जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा — Mirza Ghalib • ShayariPage