"दोस्त के नाम ख़त"
"दोस्त के नाम ख़त"
तुमने हाल पूछा है
हालत-ए-मोहब्बत में
हाल का बताना क्या!
दिल सिसक रहा हो तो
ज़ख़्म का छुपाना क्या!
तुम जो पूछ बैठे हो
कुछ तो अब बताना है
बात एक बहाना है
तुमने हाल पूछा है
इक दिया जलाता हूँ
ठीक है बताता हूँ
रोज़ उसकी यादों में
दूर तक चले जाना
जो भी था कहा उसने
अपने साथ दोहराना
साँस जब रुके तो फिर
अपनी मरती आँखों में
उसकी शक्ल ले आना
और ज़िन्दगी पाना
रोज़ ऐसे होता है
कुछ पुराने मैसेज हैं
जिनमें उसकी बातें हैं
कुछ तबील सुबहे हैं
कुछ क़दीम रातें हैं
मैंने उसकी बातों में
ज़िन्दगी गुज़ारी है
ज़िन्दगी मिटाने का
हौसला नहीं मुझमें
एक एक लफ़्ज़ उसका
साँस में पिरोया है,
रूह में समोया है
उसके जितने मैसेज है
रोज़ खोल लेता हूँ
उससे कह नहीं पाता
ख़ुद से बोल लेता हूँ
उसके पेज पर जा कर
रोज़ देखता हूँ मैं
आज कितने लोगों ने
उसकी पैरवी की है
और सोचता हूँ मैं
ये नसीब वाले हैं
उसको देख सकते हैं
उससे बात करते हैं
ये इजाज़तों वाले
मुझसे कितने बेहतर हैं
मैं तो दाग़ था कोई
जो मिटा दिया उसने
गर मिटा दिया उसने
ठीक ही किया उसने,
तुमने हाल पूछा था
लो बता दिया मैंने
जो भी कुछ बताया है
उसको मत बता देना
पढ़ के रो पड़ो तो फिर
इन तमाम लफ़्ज़ों को
बस गले लगा लेना,
वो मेरी मोहब्बत है
और सदा रहेगी वो
जब नहीं रहूँगा तो
एक दिन कहेगी वो
तुम अली फ़क़त तुम थे
जिसने मुझको चाहा था
जिसने मेरे माथे को
चूम कर बताया था
तुम दुआ का चेहरा हो
तुम हया का पहरा हो
मैं तो तब नहीं हूँगा
पर मेरी सभी नज़्में
उसकी बात सुन लेंगी
तुम भी मुस्कुरा देना
फिर बहुत मोहब्बत से
उसको सब बता देना
उसके नर्म हाथों में
मेरा ख़त थमा देना
लो ये ख़त तुम्हारा है
और उसकी जानिब से
वो जो बस तुम्हारा था
आज भी तुम्हारा है