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GHAZAL

अब मजीद उससे ये रिश्ता नहीं रखा जाता

अब मजीद उससे ये रिश्ता नहीं रखा जाता

जिस से इक शख़्स का परदा नहीं रखा जाता

एक तो बस में नहीं तुझ से मुहब्बत न करू

और फिर हाथ भी हल्का नहीं रखा जाता

पढ़ने जाता हूं तो तस्मे नहीं बांदे जाते

घर पलटता हूं तो बस्ता नहीं रखा जाता

दर-ओ-दीवार पे जंगल का गुमां होता है

मुझ से अब घर में परिंदा नहीं रखा जाता

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अब मजीद उससे ये रिश्ता नहीं रखा जाता — Tehzeeb Hafi • ShayariPage