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GHAZAL

कुछ तबीअ'त ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत न हुई

कुछ तबीअ'त ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत न हुई

जिस को चाहा उसे अपना न सके जो मिला उस से मोहब्बत न हुई

जिस से जब तक मिले दिल ही से मिले दिल जो बदला तो फ़साना बदला

रस्म-ए-दुनिया को निभाने के लिए हम से रिश्तों की तिजारत न हुई

दूर से था वो कई चेहरों में पास से कोई भी वैसा न लगा

बेवफ़ाई भी उसी का था चलन फिर किसी से ये शिकायत न हुई

छोड़ कर घर को कहीं जाने से घर में रहने की इबादत थी बड़ी

झूट मशहूर हुआ राजा का सच की संसार में शोहरत न हुई

वक़्त रूठा रहा बच्चे की तरह राह में कोई खिलौना न मिला

दोस्ती की तो निभाई न गई दुश्मनी में भी अदावत न हुई

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