रोज़ का इक मश्ग़ला कुछ देर का

रोज़ का इक मश्ग़ला कुछ देर का

उस गली का रास्ता कुछ देर का

बात क्या बढ़ती कि जब मा’लूम था

साथ है कुछ दूर का कुछ देर का

उ’म्‍र भर को एक कर जाता हमें

हौसला तेरा मिरा कुछ देर का

फिर मुझे दुनिया में शामिल कर गया

ख़ुद से मेरा वास्ता कुछ देर का

अब नहीं तो कल ये रिश्ता टूटता

फ़र्क़ क्या पड़ता भला कुछ देर का