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GHAZAL

तुम सर्वत को पढ़ती हो

तुम सर्वत को पढ़ती हो

कितनी अच्छी लड़की हो

बात नहीं सुनती हो क्यूँ

ग़ज़लें भी तो सुनती हो

क्या रिश्ता है शामों से

सूरज की क्या लगती हो

लोग नहीं डरते रब से

तुम लोगों से डरती हो

मैं तो जीता हूँ तुम में

तुम क्यूँ मुझ पे मरती हो

आदम और सुधर जाए

तुम भी हद ही करती हो

किस ने जींस करी ममनूअ'

पहनो अच्छी लगती हो

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तुम सर्वत को पढ़ती हो — Ali Zaryoun • ShayariPage