good-morning-shayari
Explore the good-morning-shayari category
Shayari
मुझे बहुत है के मैं भी शामिल हूँ तेरी जुल्फों की ज़ाइरीनों में,"तारीख़ क्या है""ख़ुदा का सवाल"तेरे वादे से प्यार है लेकिनहवा के चलते ही बादल का साफ़ हो जानाबे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगेकाम की बात मैं ने की ही नहींमुझ पे हैं सैकड़ों इल्ज़ाम मिरे साथ न चल कई दिनों से अँधेरों का बोलबाला हैजो ये हर-सू फ़लक मंज़र खड़े हैं दिए बुझे हैं मगर दूर तक उजाला हैघर से ये सोच के निकला हूँ कि मर जाना हैतुम्हारे आने की उम्मीद बर नहीं आतीदिल की गली में चाँद निकलता रहता हैघुटन सी होने लगी उस के पास जाते हुए तुम्हारा फ़ोन आया हैलब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरीकिसी से कोई भी उम्मीद रखना छोड़ कर देखोअंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी ज़िंदगी तुझ पे अब इल्ज़ाम कोई क्या रक्खे मैं इस उमीद पे डूबा कि तू बचा लेगा"ख़्वाब नहीं देखा"अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गयाआज मैंने अपना फिर सौदा कियावो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है जब आईना कोई देखो इक अजनबी देखो खुला है दर प तिरा इंतिज़ार जाता रहा यही हालात इब्तिदा से रहे आज मैंने अपना फिर सौदा किया जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता कुछ तुम ने कहा घर में बैठे हुए क्या लिखते हो ये आए दिन के हंगामे एक शायर दोस्त सेजाने किस की तलाश उन की आँखों में थी ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहर न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँआप की याद आती रही रात भरतिरी उमीद तिरा इंतिज़ार जब से है 'आप की याद आती रही रात भर'' कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे आज शब दिल के क़रीं कोई नहीं है 1 ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहर (1) ये दाग़ दाग़ उजाला, ये शबगज़ीदा सहरमैं अब किसी की भी उम्मीद तोड़ सकता हूँग़म-ए-जहाँ से मैं उकता गया तो क्या होगाइधर ये हाल कि छूने का इख़्तियार नहींटूटने पर कोई आए तो फिर ऐसा टूटेमुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे ये सच है नफ़रतों की आग ने सब कुछ जला डाला सहरा पे बुरा वक़्त मिरे यार पड़ा हैकाले कपड़े नहीं पहने हैं तो इतना कर लेवो सुबह सुबह आए मेरा हाल पूछनेपी पी के जगमगाए ज़माने गुज़र गएशेर लिखने का फायदा क्या है खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैंबीते रिश्ते तलाश करती है कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुनकोई किसी की तरफ़ है कोई किसी की तरफ़जिसे देखते ही ख़ुमारी लगेदिन सलीक़े से उगा रात ठिकाने से रहीनज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश कर कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा चाहिए अच्छों को जितना चाहिए हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या हैकोई उम्मीद बर नहीं आतीन कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद दीदार में इक तुर्फ़ा दीदार नज़र आया "शर्म कर लो""बड़ी लंबी कहानी है यार"झिझकता हूँ उसे इल्ज़ाम देतेतिरी तरफ़ से तो हाँ मान कर ही चलना हैबड़ा है दुख सो हासिल है ये आसानी मुझेझुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं एक दो ही नहीं छब्बीस दिए अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहींक्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक से है अक्स-ए-ख़ुशबू हूंबिखरने से न रोके कोईअक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई पैरों की मेहँदी मैंनेआह-ए-जाँ-सोज़ की महरूमी-ए-तासीर न देखये बात बात में क्या नाज़ुकी निकलती है साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त काकुटिया में कौन आएगा इस तीरगी के साथ उम्मीद टूटी हुई है मेरी जो दिल मिरा था वो मर चुका है चर्ख़ से कुछ उमीद थी ही नहीं उम्मीद टूटी हुई है मेरी जो दिल मिरा था वो मर चुका हैचर्ख़ से कुछ उमीद थी ही नहीं मुजाहिद की दास्तान है ख़्वाब मेरेचलो माना कि रोना मसअले का हल नहीं लेकिन